hindisamay head


अ+ अ-

कविता

चाहता हूँ प्रेम

येव्‍गेनी येव्‍तूशेंको

अनुवाद - वरयाम सिंह


मैं नहीं चाहता हर कोई मुझे प्‍यार करे
इसलिए कि संघर्ष की भावना के साथ-साथ
मुझमें बीज की तरह बैठा है मेरा युग
शायद एक नहीं, बल्कि कई-कई युग।

पश्चिम के प्रति मैं सावधान होने का अभिनय नहीं करता,
न पूरब की पूजा करता हूँ अंधों के तरह,
दोनों पक्षों की प्रशंसा पाने के लिए
मैंने स्‍वयं अपने से पूछी नहीं पहेलियाँ।

अपने हृदय पर हाथ रख
संभव नहीं है इस निर्मम संघर्ष में
पक्षधर होना एक साथ
शिकार और शिकारी का।

लुच्‍चापन है यह प्रयास करना
कि सभी मुझे पसंद करें
जितनी दूर मैं रखता हूँ चाटुकारों को
उतनी ही दूर चाटुकारिता चाहने वालों को।

मैं नहीं चाहता भीड़ मुझे प्रेम करे
चाहता हूँ प्रेम केवल मित्रों का।
चाहता हूँ तुम मुझे प्रेम करो
और कभी-कभी मेरा अपना बेटा मुझे प्रेम करे।

मैं चाहता हूँ पाना उनका प्रेम
जो लड़ते हैं, और लड़ते हैं अंत तक
चाहता हूँ मुझे प्रेम करती रहे
मेरे खोये पिता की छाया।

 


End Text   End Text    End Text